“मत कहो, आकाश में कुहरा घना है, यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है ” दुष्यंत कुमार की यह पंक्ति वर्तमान मीडिया परिवेश में अक्षरतः सटीक बैठती हैं। कलम की स्याही सूख रही है। खबरों की धार कुंद होती जा रही है। रिर्पोटर पूरी तरह से कवरेज नहीं कर पा रहे हैं। चारों ओर से दबाव और कुछ ने करो की हिदायत के साथ मीडिया की स्वतंत्रता का तमगा।
कुछ इसी मृगमारिचिका में चल रहे हैं आज के मीडिया के संस्थान। कहीं प्रदेश सरकार का दबाव तो किसी पर स्थानीय प्रषासन का। कुल मिलाकर सब कुछ दबाव में। मीडिया में आए इस बदलाव के बारे मंे ज्यादा कुछ कहने की जरूरत नहीं। खबरें छपती हैं। लेकिन बिना किसी प्रतिक्रिया के फाइल में दफन हो जाती है। हर दिन रिर्पोटस के उपर सकारत्मक रिर्पोटिंग का दबाव।
कुल मिलाकर वर्तमान में मीडिया की भूमिका पर चिंता जायज है। लेकिन सभी को मिलकर इसका रास्ता तलाषना होगा। वरन मीडिया को खुद आगे बढ़कर अपनी भूमिका निर्धारित करनी होगी नहीं तो मीडिया पर नियंत्रण के समर्थन में जो मुहिम चलाई जा रही है। उसके दूरगामी परिणाम खतरनाक होंगे। आम आदमी से मीडिया की पकड़ दूर होती जा रही है। लोग अखबार तो खरीदते हैं लेकिन पढ़ते कितना हैं ? समाचार पत्रों की बिक्री आज लोकलुभावनी योजनाओं के सहारे हो रही हैं। नित नई स्कीमों के सहारे बिक रहे हैं समाचार पत्र लेकिन सवाल है कब तक यह चलेगा ? मीडिया मे जब से कार्पोरेट कल्चर का दखल बढा वह आम आदमी से दूर होता चला गया और खत्म हो गई खबरों की प्रसंगिकता।
24 अगस्त 1936 में मुबंई के पत्रकारों द्वारा दिए गए अभिनन्दन पत्र के जवाब में जवाहर लाल नेहरू ने द बाम्बे क्रानिकल में लिखे लेख में कहा था “आज के जमाने में सार्वजनिक जीवन में पत्रकारिता और पत्रकारों की भूमिका बडी महत्तवपूर्ण है। हिन्दुस्तान में या तो सरकार के जरिए या अखबरों के मालिकों के जरिए या फिर विज्ञापनदाताओं के दबाव से तथ्यों के दबाए जाने की संभावना है। मैं इस बात का बुरा नहीं मानता कि अखबार अपनी नीति के मुताबिक किसी खास तरह की खबरों का तरजीह दें, लेकिन मैं खबरों को दबाए जाने के खिलाफ हूं , क्योंकि इससे दुनिया की घटनाओं के बारे में सही राय बनाने का एकमात्र साधन जनता से छिन जाता है। वह ताकत अपने हाथ मंे रखिए अगर वह गई तो आपका महत्व भी जाता रहेगा“ नेहरू जी के कहे ये षब्द आज की मीडिया पर सटीक बैठते हैं। शायद उन्हे भान था कि भविष्य में मीडिया का क्या हश्र होने वाला है।